
नारायण देबनाथ अपने अध्ययन में। 2011. बोनीराज द्वारा विकिपीडिया के माध्यम से छवि । CC BY 3.0.
यह मूल अंग्रेजी लेख जनवरी 2022 में लिखा गया था, जिसका हिंदी अनुवाद स्व. नारायण देबनाथ की प्रथम पुण्यतिथी पर उन्हें स्मरण करते हुये आज प्रकाशित किया जा रहा है।
भारतीय कॉमिक्स रचयिता, लेखक और चित्रकार नारायण देबनाथ को शायद अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में नहीं जाना जाता था, लेकिन उन्हें बांग्ला भाषा की कॉमिक स्ट्रिप्स के जनक के रूप में जाना जाता है। उनकी लोकप्रिय कॉमिक स्ट्रिप्स जैसे हांदा भोंदा (1962), बांटुल द ग्रेट (1965) और नॉन्टे फोन्टे (1969) ने बंगाली कॉमिक्स को लोकप्रिय बनाया, और पीढ़ियों से भारत और बांग्लादेश में बंगाली भाषी बच्चों और किशोरों का मनोरंजन किया। पिछले साल 18 जनवरी को लंबी बीमारी के बाद कोलकाता के एक अस्पताल में 96 साल की उम्र में देबनाथ का निधन हो गया था। जाहिर है सोशल मीडिया पर उनके प्रशंसकों ने बंगाली कॉमिक स्ट्रिप्स की दुनिया में आये इस शून्य का शोक मनाया।कोलकाता से पत्रकार मोनिदीपा बनर्जी ने उन्हें कुछ इस तरह से धन्यवाद दिया था:
Narayan Debnath, legendary creator of Bengali children's comics, passes away in Kolkata. He was 97. Thank you, Narayan Babu, for Nonte Phonte, Handa Bhonda, Batul the Great and much more. And for keeping the child in each one of us alive. #RIP pic.twitter.com/kaDLbcS5HK
— Monideepa Banerjie (@Monideepa62) January 18, 2022
बंगाली बच्चों की कॉमिक्स के प्रसिद्ध रचनाकार नारायण देबनाथ का कोलकाता में निधन हो गया। वह 97 वर्ष के थे। धन्यवाद, नारायण बाबू, नॉन्टे फोन्टे, हांदा भोंदा, बाँटुल द ग्रेट और बहुत कुछ के लिए और हम में से प्रत्येक के अंदर छुपे बच्चे को जीवित रखने के लिए। #श्रद्धांजली
उद्यमी बोरिया मजूमदार याद करते हैं कि कैसे देबनाथ के कार्टून चरित्रों ने उनके बचपन को प्रभावित किया:
Anyone who has grown up in the 70s or 80s in Kolkata has lived on Narayan Debnath. His characters are in each of us. With him gone each one of us have lost a part of our childhood. pic.twitter.com/iExeO2zG4g
— Boria Majumdar (@BoriaMajumdar) January 18, 2022
कोलकाता में 70 या 80 के दशक में जो भी बड़ा हुआ है, उसका बचपन नारायण देबनाथ की कृतियों को पढ़ते बीता है। उनके पात्र हम में से प्रत्येक में बसे हैं। उनके जाने से हम सभी ने अपने बचपन का एक हिस्सा खो दिया है।
शोधकर्ता स्वाति मोइत्रा भी सहमत हैं:
Even before I could read, I would hold the Nonte Phonte comic books upside down and read out loud whatever I remembered from it, complete with sounds effects like ‘haha’ ‘hihi’ ‘khya khya’. Our neighbourhood hulo is called Keltuda.
Thank you for everything. #NarayanDebnath
— Swati Moitra (@swatiatrest) January 18, 2022
जब मैंने पढ़ना भी नहीं सीखा था, तब से मैं नॉन्टे फोन्टे कॉमिक किताबों को उल्टा पकड़ लेती थी और जो कुछ भी मुझे याद आता था, उसे ज़ोर से पढ़ती थी, ‘हाहा’ ‘हीही’ ‘ख्या ख्या’ जैसे ध्वनि प्रभावों के साथ। हम हमारे पड़ोस के हूलो (बिलाव) को केल्टुदा कह कर पुकारते हैं। हर चीज के लिए धन्यवाद।
देबनाथ का जन्म 1925 में भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के पास हावड़ा के शिबपुर में हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने भारतीय कला महाविद्यालय में ललित कला का अध्ययन किया, लेकिन अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की। उन्होंने लोगो बनाने वाली विज्ञापन एजेंसियों के लिए फ्रीलांसिंग करके अपने करियर की शुरुआत की। 1950 के दशक के दौरान उन्होंने कई बच्चों की किताबों का चित्रण किया, जिसमें एक प्रमुख प्रकाशन गृह देव साहित्य कुटीर के लिए साहसिक उपन्यास और अंतरराष्ट्रीय क्लासिक पुस्तकों का अनुवाद शामिल है।
उनकी कालजयी रचनायें
हांदा भोंदा: उनकी पहली कॉमिक स्ट्रिप हांदा भोंदा 1962 में बंगाली बच्चों के मासिक शुक्तारा में शुरू हुई, जिसे देव साहित्य कुटीर ने भी प्रकाशित किया। कहानी लॉरेल और हार्डी पात्रों के समान दो युवा लड़कों की है। दुबले-पतले और शरारती हांदा हमेशा अपने भारी भरकम दोस्त भोंदा को परेशानी में डालने की कोशिश करता है, हालांकि विनम्र भोंदा हमेशा विजेता बनकर उभरता है।
हांदा भोंदा एक एकल लेखक-कलाकार द्वारा लिखी गई सबसे लंबी चलने वाली बंगाली कॉमिक स्ट्रिप है, और इसे पांच दशकों से अधिक समय से प्रकाशित किया गया है।
यहाँ श्रृंखला से एक एनिमेटेड एपिसोड है:
https://youtu.be/xsS6y6V_LYA?t=13
बांटुल द ग्रेट: बांटुल (बातूल) 1965 के बाद से लुटेरों और गुंडों से लोगों की रक्षा करने वाला पहला बंगाली कॉमिक स्ट्रिप सुपरहीरो है, और यह शुक्तारा पत्रिका में भी दिखाई देता है। मजबूत मांसपेशियों और विशाल शरीर वाला यह चरित्र देबनाथ के दोस्त, प्रसिद्ध बंगाली बॉडीबिल्डर मनोहर आइच से प्रभावित होकर रचा गया था। लेकिन बांटुल के पास अभी तक महाशक्तियां नहीं थीं। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान , संपादकों और प्रकाशकों ने देबनाथ से बांटुल को अजेय बनाने का अनुरोध किया। तब से बांटुल के पास एक अत्यधिक शक्तिशाली काया आ गई जिस पर टकराकर बंदूक की गोलियां भी छिटक कर बिखर जाती थी।
यह श्रृंखला भारतीय टेलीविजन पर भी चलती है:
नॉन्टे फोन्टे: नॉन्टे फोन्टे 1969 में बच्चों की मासिक पत्रिका किशोर भारती में दिखाई देने लगे। यह दो युवा लड़कों नॉन्टे और फोन्टे के मजेदार रोमांचकारी किस्से हैं, जो अपने बोर्डिंग स्कूल के अधीक्षक की नाक में दम कर रखते हैं।
संदीप तालुकदार ने अंतर्राष्ट्रीय पाठकों के लिए नॉन्टे और फोन्टे कॉमिक्स के एक पृष्ठ का अनुवाद करने की कोशिश की थी।
Tried my hand at translating one of the many comics created by #NarayanDebnath. First page: pic.twitter.com/RtX8yNb0pt
— Sandip Talukdar (@sandipcal) January 18, 2022
#NarayanDebnath द्वारा बनाई गई कई कॉमिक्स में से एक का अनुवाद करने की कोशिश की। पहला पन्ना:
भारतीय समाचार पोर्टल स्क्रॉल.इन पर देवरसी घोष ने देबनाथ के अन्य कम-ज्ञात चरित्रों को साझा किया है:
Patalchand the Magician (created in 1969), a young neighbourhood magician whose powers solve local problems; Bahadur Beral (created in 1982), a wonder cat who is too smart for his own good; Danpite Khadu aar tar Chemical Dadu (created in 1983), a Rick and Morty-like pair of a young boy and his scientist grandfather whose weird inventions form the crux of the stories; and Petuk Master Batuklal (created in 1984), the last of Debnath’s serialised creations, who is a gluttonous schoolteacher devising ways to steal food but is always stopped in his tracks by the students.
पातालचंद द मैजिशियन (1969 में निर्मित), एक साधारण युवा जादूगर जिसकी शक्तियां स्थानीय समस्याओं का समाधान करती हैं; बहादुर बेराल (1982 में बनाया गया), एक अद्भुत बिल्ली की कहानी, जो कुछ ज्यादा ही चालाक है; डानपीटे खाडू आर तार केमिकल दादू (1983 में बनाया गया), एक युवा लड़के और उसके वैज्ञानिक दादा की रिक और मोर्टी जैसी जोड़ी, जिनके अजीब आविष्कार कहानियों के कारक बनते हैं; और पेटुक मास्टर बटुकलाल (1984 में निर्मित), देबनाथ की क्रमबद्ध कृतियों में से अंतिम, जो एक पेटू स्कूली शिक्षक के बार में है जो भोजन चुराने के नित नायाब तरीके तैयार करता है, लेकिन अपने छात्रों द्वारा हमेशा ही मात खा जाता है।
हालांकि, ट्विटर-उपयोगकर्ता विनोद को लगता है कि देबनाथ का सबसे कम आंका जाने वाला चरित्र गोयन्दा (जासूस) कौशिक है:
You may have heard of some famous creations by Narayan Debnath, like
Batul , Handa-Bhonda , Nonte-Phonte, Khandu, Bahadur Beral . But most underrated possibly is Kousik. A bio-mechanically enhanced super spy finds himself against megalomaniacs
Art- https://t.co/c4ERtRGWfm pic.twitter.com/nvPiJ3vfJ8— Vinod (@VinodDX9) January 18, 2022
आपने नारायण देबनाथ की कुछ प्रसिद्ध कृतियों के बारे में सुना होगा, जैसे बांटुल, हांदा-भोंदा, नॉन्टे-फोंटे, खांडू, बहादुर बेराल। लेकिन उनकी सबसे कम आंके जाने वाली कृति संभवतः कौशिक है। बायो-मैकेनिकल रूप से उन्नत एक सुपर स्पाई, जो खुद को सत्ता के उन्मादियों के खिलाफ लामबंद पाता है।
उनकी अधिकांश हास्य श्रृंखला पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुई हैं, और उनकी कुछ रचनाएँ टीवी पर प्रसारित हुईं और दशकों तक चलीं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कार्टूनिस्ट्स ने उनके कॉमिक स्ट्रिप करियर के छह दशकों से अधिक के करियर को श्रद्धांजलि दी:
IIC is very sad to inform you that the octogenarian comics artist Mr. Narayan Debnath, 97, just passed away. Padmashri award (2021) was recently presented to him at his residence. He has created 2000+ comics and illustrations over 60 years. Incredible achievement! Rest in peace. pic.twitter.com/NDbEd9wMOc
— IIC (@CartoonistsInd) January 18, 2022
हाल ही में उन्हें उनके आवास पर पद्मश्री पुरस्कार (2021) प्रदान किया गया। उन्होंने 60 वर्षों में 2000+ कॉमिक्स और चित्र बनाए हैं। अविश्वसनीय उपलब्धि! उनकी आत्मा को शांति मिले।
सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि
पत्रकार सौम्यदीप्त बनर्जी को आश्चर्य है कि क्या बंगाली “कॉमिक्स” पढ़ने की परंपरा जारी रहेगी:
Today's kids won't understand this brand of humour. They won't ever know the sheer joy of reading “comics”. I proudly belong to the last generation who thrived on comic books.
Narayan Debnath's cartoon characters were a big part of my childhood.
pic.twitter.com/oy1WMlC0vV— Soumyadipta (@Soumyadipta) January 18, 2022
आज के बच्चे इस ब्रांड ऑफ ह्यूमर को नहीं समझ पाएंगे। वे कभी भी “कॉमिक्स” पढ़ने के आनंद को नहीं जान पाएंगे। मैं गर्व से उस अंतिम पीढ़ी से संबंध रखता हूं जो कॉमिक पुस्तकों पर फली-फूली है। नारायण देबनाथ के कार्टून चरित्र मेरे बचपन का एक बड़ा हिस्सा थे।
पत्रकार बिहान सेन गुप्ता को लगता है कि नुकसान व्यक्तिगत है:
A loss that feels personal. #NarayanDebnath was an inseparable part of childhood, quite like Lila Majumdar, for any Bengali kid. Long before we knew Hulk, we knew Batul; long before hostel life kicked in, Nonte-Fonte introduced us to that part of a fun-filled world 🙂 pic.twitter.com/wrW7VedlOI
— Bihan Sengupta (@BihanSengupta91) January 18, 2022
#NarayanDebnath किसी भी बंगाली बच्चे के लिए लीला मजूमदार की तरह बचपन का एक अविभाज्य हिस्सा थे। हल्क को जानने से बहुत पहले, हम बाँटुल को जानते थे; हॉस्टल लाइफ शुरू होने से बहुत पहले, नॉन्टे-फोंटे ने हमें मस्ती से भरी दुनिया के उस हिस्से से परिचित कराया 🙂
लेखक और वैज्ञानिक एएम (@bhalomanush) का मानना है कि देबनाथ को कभी वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे:
Narayan Debnath never got the accolades he deserved. First, because his creations were exclusively in Bangla. And second because he made comic books for children that were warm, relatable, and funny. Had they been edgy, literary, or political, he’d have been taken more seriously.
— A.M. (@bhalomanush) January 18, 2022
नारायण देबनाथ को कभी वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। शायद इसलिये कि उनकी रचनाएँ विशेष रूप से बांग्ला में थीं। और दूजे उन्होंने केवल बच्चों के लिए हास्य पुस्तकें बनाईं जो आशाभरी, भरोसेमंद और मज़ेदार थीं। अगर वे सनकी, साहित्यिक या राजनीतिक होते, तो उन्हें अधिक गंभीरता से लिया जाता।
हालाँकि, देबनाथ को भारत में कुछ पहचान ज़रूर मिली। उन्हें 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और उसी वर्ष पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा बंग विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्होंने 2015 में रवींद्र भारती विश्वविद्यालय से मानद डी. लिट प्राप्त किया।
देबनाथ को 2021 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था, जो उन्हें 13 जनवरी, 2022 को अस्पताल में मिला था।