घूंघट से परे: एक नेपाली नवविवाहिता की कहानी

Image by Pratibha Tuladhar via Nepali Times. Used with permission.

छवि: प्रतिभा तुलाधर द्वारा, नेपाली टाइम्स के माध्यम से, अनुमति के साथ उपयोग की गई।

यह कहानी प्रतिभा तुलाधर द्वारा लिखित, वास्तविक लोगों के जीवन पर आधारित एक मासिक कॉलम, सबअर्बन टेल्स श्रृंखला का हिस्सा है, और मूल रूप से नेपाली टाइम्स में प्रकाशित हुई है। सामग्री-साझाकरण समझौते के हिस्से के रूप में एक संपादित संस्करण ग्लोबल वॉयस पर पुनः प्रकाशित किया गया है।

जब कल्पना ने पहली बार अपने भावी पति का हाथ थामा, तो उसका मन अपने गृहनगर के समतल खेतों से हटकर काठमांडू की चौड़ी सड़कों पर चला गया, जो जल्द ही उसका नया घर बनने वाला था। वह खड़ी हुई, पति के चेहरे की ओर देखा और मुस्कुरायी; उसके पीछे गेहूँ से लबलबाता खेत एक सुनहरे पर्दे की तरह लग रहा था, और उसका मन हुआ कि वो उस पल की तुरंत एक तस्वीर ले सके। उसने सोचा कि शायद काठमांडू में एक अच्छे कैमरे वाला नया फोन मिलना संभव होगा, और मैं फेसबुक पर बहुत सारी तस्वीरें पोस्ट कर सकूंगी।

एक साल बाद, कल्पना खुद को काठमांडू के एक ब्यूटी पार्लर के बंद कमरे में पाती है। नहीं, वह अपनी भौहें नहीं बनवा रही है और न ही बाल कटवा रही है। वह अब यहीं काम करती है। प्रतिदिन 10 से 5।

”सच में देखा जाये तो काम के घंटे इतने बुरे नहीं हैं” वह कहती है, “पैसा उतना ज्यादा नहीं है, लेकिन मेरे नियोक्ता का कहना है कि ग्राहकों से टिप मिलेंगे।”

अपने गृहनगर में, कल्पना ने धागे का उपयोग करके भौहें उखाड़ने, टिन के डब्बों में मोम को गर्म करने और उन्हें कपड़े की पट्टियों से खींचने और फेशियल के लिये आईं महिलाओं के चेहरे और कंधों की मालिश करने का प्रशिक्षण लिया था। उसके दोस्तों ने उसे सलाह दी थी कि काठमांडू जाने से पहले यह सीखा जाने वाला सबसे अच्छा कौशल है। उन्होंने कहा था, ”नौकरी ढूंढना आसान है।” “और यदि आप विदेश जा रहे हैं, तो और भी अच्छा। महिलाएं ब्यूटी पार्लर में वास्तव में अच्छा कमा लेती हैं।”

अब, काठमांडू में, कल्पना को एहसास होता है कि असल जीवन उस कहानी से अलग है जो उसने घर पर बार-बार सुनी थी।

बचपन में उसने कुछ सप्ताह काठमांडू में रिश्तेदारों से मिलने में बिताए थे, और इसलिए, निश्चित रूप से, वह शहर को जानती थी। लेकिन काठमांडू, जो एक वयस्क के रूप में उसे मिला था वो एकाकी, दम घोंटू और उदासीन महसूस होता था। बस की यात्रायें अब आरामदायक नहीं बल्कि कठिन परीक्षा सी हो गई हैं। अधिकांश दिनों में अन्य यात्रियों द्वारा कुचले जाये बिना सिर्फ खड़े भर होने के लिए भी जगह खोजना भी एक संघर्ष होता है। यह एहसास अनजाना तो नहीं पर चिंताजनक जरूर होता है कि किसी की कोहनी उसके चेहरे पर से जा रही है, किसी की उरुसंधि उस पर घिस रही है, तो किसी और की लहसुनी सांस उसके बालों पर पड़ रही है। कभी-कभी, बस की यात्रा के दौरान, वह तब तक अपनी आँखें बंद कर लेती है जब तक कि कंडक्टर उसके स्टाप के आने की घोषणा नहीं कर देता, “बालाजू!”

इस यात्रा में उसे प्रति माह 5000 नेपाली रुपये (₹3130) का खर्च आता है। “दरिंदे!” वह मन ही मन सोचती है। कल्पना बस के सफर के दौरान आहें भरती रहती है।

पार्लर में पहले कुछ हफ्तों में, काम अन्य महिलाओं के साथ घूमने, गपशप करने, सप्ताह में एक बार 150 रुपये (₹94) में बफ़ मोमो खाने की जगह जैसा लगता था। ज्यादातर, चने के साथ मसालेदार वाईवाई (इंस्टेंट नूडल्स) का एक कटोरा 60 रुपये (₹38) में। कल्पना ने अपनी भावनाओं को एक परिचित उत्साह की सीमा पर पाया, जैसा कि उसने अपने स्कूल के दिनों में अपने बचपन के दोस्तों के साथ कुछ पल बिताते समय महसूस किया था।

कल्पना कहती हैं कि पार्लर में काम करने के दो महीने से भी कम समय के भीतर उनकी जिम्मेदारियाँ बढ़ने लगीं। मालिक ने उसे बताया कि व्यवसाय धीमा है और शहर में दुकानें बंद हो रही हैं, और उसे इसे जारी रखने का कोई तरीका सोचना होगा। उसने कहा कि उसे या तो यह जगह बेचनी होगी या फिर इसे नये सिरे से बनाना होगा।

कल्पना को उस समय चिंता थी कि बिजनेस बेचने का मतलब होगा कि उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा। बस का किराया और खाजा का भुगतान करने के बाद वह जो 3000 रुपये (₹1880) प्रति माह बचा पाती थी, वह ख़त्म हो जाएगा। इन दिनों, वह कभी-कभी चाहती है कि मालिक ने वाकई उसका व्यवसाय बेच दिया हो या बंद कर दिया हो। जाहिर है, ऐसा हुआ नहीं।

उसके नियोक्ता ने काफी जल्दी चीजें ठीक कर लीं। उसने दुकान के बोर्ड में “मालिश” शब्द जोड़ दिया। और जिन ऊँचे बिस्तरों का उपयोग वे पहले फेशियल सेवाएँ प्रदान करने के लिए करते थे, वे जल्द ही मालिश टेबल में बदल गए। नियोक्ता महिला ने कल्पना के साथ काम करने वाली तीनों लड़कियों को बारी-बारी से प्रशिक्षण दिया, और उन्हें बताया कि कहाँ दबाना है, कहाँ बल लगाना है, कहाँ गूंधना है, कहाँ रगड़ना है और कहाँ रोल करना है।

मालिश करने वाली की अपनी नई भूमिका में, कल्पना को कभी-कभी पता चलता है कि वह पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भी मदद कर रही है। पुरुष अक्सर थुलथुले पेट वाले, मध्यम आयु वर्ग के पुरुष होते हैं जो चुपचाप आते हैं और झटपट चले जाते हैं।

“एक बार, एक व्यक्ति ने मुझसे अनुचित प्रकार की सेवा मांगी, और मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्रोधित थी या भयभीत। मैं कमरे से बाहर चली गई और दीदी को बुलाया। लेकिन दीदी ने कहा कि कुछ ग्राहकों को खुश करना कठिन है, और शेष सत्र के लिए उन्होंने मेरी जगह ले ली।”

कल्पना के हाथ छोटे हैं, किसी स्कूली छात्रा की तरह, और कोई कल्पना नहीं कर सकता कि इतने छोटे हाथ पूरी पिंडली या रीढ़ की मालिश कैसे कर सकते हैं। छोटे छोटे हाथ।

“मेरे पति को नहीं पता. वह अब भी सोचता है कि यह एक पार्लर है, जो कि है भी। अगर उसे पता चले कि मैं मालिश करने वाली के तौर पर भी काम कर चुकी हूं तो शायद मुझे मार दे। मार्नु हुंचा (यानि “वह मुझे मार डालेगा”)। अगर मुझे दूसरी नौकरी मिल जाए तो मैं ये काम छोड़ दूंगी। यहां तक कि एक घरेलू नौकरानी का काम भी मिले तो।”

कभी कभी मुझे लगता है कि मैं एक दिन सुबह उठूंगी, काम के लिए निकलूंगी, बालाजू से बस में चढ़ूंगी और चलती रहुंगी, बस में ही सो जाऊंगी, कुछ बादाम और सुनतला (संतरे) खरीदूंगी, उन्हें खाकर फिर सो जाऊंगी और छह बजे घर वापस आ जाउंगी। उन्हें कभी पता नहीं चलेगा, है ना? मेरा मतलब है, जब तक पैसा खत्म नहीं हो जाता?”

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