कलकत्ता में नागरिक पत्रकारों का कमाल

नेबरहुड डॉयरीज़ परियोजना शुरु हुये आठ हफ्ते गुज़र चुके हैं। हर सोमवार शाम 6 से 8 बजे तक प्रतिभागी कोलकाता के बोउबाजार हाई स्कूल की तीसरी मंजिल पर जमा होते हैं। अब तक केवल एक ही सत्र का बिजली जाने के कारण समय बदलना पड़ा। कुल मिलाकर सात सत्र पूरे हो चुके हैं। उनका पाठ्यक्रम विस्तारित है और तरीके अनोखे भी हैं और प्रभावशाली भी। बड़ा अच्छा होगा अगर इन्हें एकत्रित कर दुनिया भर में नागरिक पत्रकारों के प्रशिक्षण हेतु एक मार्गदर्शिका तैयार की जा सके।

उनके परियोजना चिट्ठे से कुछ अंशः

हम हर सत्र की शुरुवात में गोला बनाकर बैठ पिछले हफ्तों के पढ़ाई साझा करते हैं। इसके बाद हम इंटरैक्टिव गतिविधियों, परिचर्चा, समूह खेलों और कभी कभार व्यक्तिगत या सामूहिक लेखन के माध्यम से अगले नियत कार्य की ओर बढ़ते हैं। सोमवार के हमारे संध्याकालीन सत्रों की झलक नीचे देखें।

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छठे सत्र के विवरणः

पाँचवे सत्र का नियत काम बोउबाजार के विविध व्यक्तित्वों और पात्रों पर खोज और साक्षात्कार। सत्र में हुई चर्चा के फलस्वरूप युवा पत्रकारों के तय किये व्यक्तित्व थे गुंडे, लाभभोगी, साहसी उत्तरजीवी और भाषणबाज।

नीचे प्रस्तुत हैं इन प्रतिभागियों द्वारा इन किरदारों के चरित्रचित्रण के कुछ अंश। मूल लेख बाँग्ला में थे जिनका नेबरहुड डॉयरीज़ परियोजना लीडरों ने अनुवाद किया है।

तानिया और ज्योत्सना ने चित्रांकन किया मनोरंजन दास नामक एक दरियादिल लाभभोगी काः

“वो शीतकाल में गरीब और ज़रुरतमंदों को कंबल बाँटता है। ज़रूरत पड़ने पर अपनी दुकान से लोगों को दवाईयाँ भी देता है।

सुप्रिया और पिंकी उत्तरजीवी महिला तुलसी माशी के बारे में लिखती हैं

“वो केवल एक ही बात याद करती है कि एक समय ऐसा भी था जब उसे खाना भीख में माँगना पड़ता था। पर अब वह अपने पैरों पर खड़ी हो सकी है। उसने एक लंबी दूरी तय की है।”

परियोजना ब्लॉग में हाल ही में प्रतिभागियों द्वारा समुदाय में रहने के अनुभवों पर और लेख जोड़े गये हैं।

सुरोजीत एक कपड़ा विक्रेता के बारे में लिखते हैं

“घरेलू दिक्कतों के कारण उसे आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी। अब वो 24 साल का है और शियालदाह ओवर ब्रिज के नीचे कपड़े बेचता है। घरे में माँ बाप और दो बहनें हैं। उनकी जिम्मेवारी उसी पर है। पढ़ाई पूरी न करने के कारण उसे अच्छी नौकरी मिल नहीं पाई। उसे यकीन है कि उसकी बहन स्वतंत्र होने पर उसका साथ देगी और अपने माता पिता का ख्याल रखेगी।”

पिंकी एक घरेलू नौकरानी की व्यथा कथा लिखती हैं

“कमरे में दो बिस्तर हैं, एक उपरी टायर पर, एक नीचे। अगर कोई ऊपरी बंक लेता है तो माहवार खर्च है 1450 रुपये जबकि निचले बंक की कीमत 1300 रुपये है। तो बुली ने निचला बंक लेने का ही निर्णय लिया।”

तानिया मंडल एक मछली विक्रेता के संघर्ष के बारे में लिखती हैं

“टापा बचपन से इस व्यवसाय में हैं। अपनी पहचान के बारे में उसे कोई शर्म नहीं। वो निचले मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखता है। उसका कमरा किसी कबूतर के अंधेरे घोंसले सा है। मुशा दा को याद भी नहीं कि कमरे की दिवार का रंग क्या था। 6 बटै 4 फीट का कमरा है यह। कोई खाट नहीं है, फर्श पर एक चटाई और तकिया भर है। दीवारें साड़ियों और अन्य कपड़ों के ढेर से लगभग ढंकी हुई हैं। रसोई अलग से नहीं बनी है, गुसलखाने पर परदा टाँग कर एक छोटा किचन बना लिया गया है। कमरे में चमड़े, जूते की पालिश और सीलन की मिलीजुली गंध बरपा है। बाहर से पता नहीं चलता, पर जब आप कमरे में आते हैं तो यूं लगता है कि घुसते ही कमरा खत्म भी हो गया।”

और अंजली ज्योत्सना नाम की एक वैश्या की करुण दास्तान बयां करती हैं

“ज्योत्सना बस दो जमात पढ़ी है। पढ़ाई में उसका मन नही लगता था, इसलिये छोड़ दिया। जब वो ग्यारह बारह बरस की थी तब उसका ब्याह करा दिया गया। विवाह के 3 – 4 महीने बाद उसका यौवनारंभ हुआ।”

इसके आगे की कहानी आप यहाँ पढ़ सकते हैं, कि कैसे उसके पति ने आत्महत्या कर ली और किस तरह अपनी बेटी का पेट भरने के लिये उसे वैश्यावृत्ति के कीचड़ में उतरना पड़ा।

सातवें सत्र के नियत कार्य में प्रतिभागियों को अपने आस पड़ोस में परिवर्तन लाने के तरीके बतलाये गये। पढ़ाने का एक तरीका यह है कि इन उभरते पत्रकारों को अपने इलाके में किसी नई उपजती समस्या की पहचान कर अपनी समझ के अनुसार उसका संभव हल निकालने को कहा जाता है। उन्हें गृहकार्य के तौर पर इस समस्या और उसके समाधान पर एक लेख तैयार करने को कहा गया।

हमें यकीन है कि इन चमत्कारी कार्यशालाओं से ये नागरिक पत्रकार न केवल अच्छे लेखक बन सकेंगे बल्कि इससे उनके ज्ञान और मानवीय गुणों में भी इज़ाफा होगा। फरवरी और मार्च में नेबरहुड डायरीज़ के प्रतिभागी अपने स्कूली परीक्षाओं की तैयारी हेतु छुट्टी पर रहेंगे पर अप्रेल में उनकी वापसी का हमें इंतज़ार रहेगा।

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