दुनिया भर से लोरियाँ, अरोरो में

lullaby by Wide© Raf.f

lullaby by Wide© Raf.f

अर्जेंटीना की एक कलाकार ग़ैबरीला गोल्डर ने अरोरो नामक परियोजना के तहत एक बीड़ा उठाया है, दुनिया भर से लोरियाँ खोज कर उन्हें रिकार्ड व संग्रहित करने का। राईसिंग वॉयसेज़ के निदेशक डेविड ससाकी ने 80+1 वेबसाईट पर ग़ैबरीला का साक्षात्कार रिकार्ड तो किया ही साथ ही ग्लोबल वॉयसेज़ के लेखकों और संपादकों को बचपन में सुनी लोरियाँ गा कर रिकार्ड करने की प्रेरणा भी दी।

डेविड लिखते हैं:

मैं ब्यूनस आयर्स के सैन टेल्मो इलाके में गोल्डर के साथ बैठा तो यह पता लगा कि 200 विडियो तो बनाये भी जा चुके हैं। और यह भी कि अगले दो महीनों में परियोजना की दिशा क्या होगी। परियोजना के अंतिम चरण में ब्यूनस आयर्स व लिंज़ में एक साथ प्रदर्शनी लगाने का कार्यक्रम है।

लोरी परियोजना से प्रभावित होकर डेविड ने “स्विंग लो, स्वीट चैरियट” लोरी गाते हुये खुद को रिकार्ड भी किया जिसे गाकर उनके माता पिता उन्हें सुलाया करते थे।

लोवा रकोटोमालाला ने मैडागास्कर से एक बतख पर आधारित लोरी गाकर सुनाई।

ओनिक और वेरोनिका का शुक्रिया जिन्होंने यह सुझाव दिया कि हम आपको इस रूसी एनीमेशन प्रकल्प के बारे में भी बतायें जिसके अंतर्गत दुनिया भर से गानों के बोल सुंदर चित्रों द्वारा दर्शाये गये हैं। नीचे दिये विडियो में शामिल है एक अजरबैजानी लोरी जिसमें एक शिशु अपने जीवन के बारे में स्वप्न देख रहा है और युक्रेन से एक लोरी जिसमें शीतकाल कि ठिठुरन बच्चों को सुला देती है। विभिन्न देशों से अन्य लोरियाँ यहाँ मिलेंगी।

पाओला द्वारा बताई यह अगली लोरी एक ब्राज़ीलियन गीत है जो दरअसल बच्चों को डराकर सुलाने के लिये हैः काले चेहरे वाला एक डरावना बैल जो बच्चों को उठाकर ले जाता है। नीचे दिये विडियो में एक नन्ही से बच्ची इसे गा रही हैः

डरावने गीत पर मधुर संगीत वाली एक और लोरी है शिमाबारा, जिसका मतलब कुछ ऐसा ह

“मैं बहुत गरीब और अनाकर्षक हूँ, मुझे कौन खरीदेगा…सो जाओ नहीं तो बच्चे पकड़ने वाला तुम्हें उठा ले जायेगा…उरुनबाई…उरुनबाई”

हम सभी लेखों व संपादकों का शुक्रिया अदा करते हैं जिन्होंने अपने बचपन की इन स्मृतियों को साझा किया। आपको यह लेख कैसा लगा? यदि अच्छा लगा तो इंतज़ार कीजिये, भाग 2 लेकर हम जल्द उपस्थित होंगे।

1 टिप्पणी

  • देबू भाई कुछ दिनों से मन में एक विचार चल रहा था, लोरियों को जमा करने का । अभी तक फिल्‍मी लोरियां तो जमा करने का काम शुरू भी कर दिया है । पर देवेंद्र सत्‍यार्थी की तरह लोकगीत जमा करने का साहस नहीं जुटा पाये हैं हम । दरअसल शहरी और पेशेवर जिंदगी की कायरता आपको यायावरी नहीं करने देती । आपकी इस पोस्‍ट ने हमारे मन में वही कीड़ा फिर जगा दिया है ।

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