बंगाली चिट्ठे : चहुँओर तसलीमा

बांग्लादेश की निर्वासित, तेजतर्रार लेखिका, तसलीमा नसरीन के ऊपर एमआईएम (मजलिस – ए – इत्तेहादुल – मुसलिमीन) के कार्यकर्ताओं ने हैदराबाद, भारत के एक प्रेस क्लब में हो रहे एक कार्यक्रम के दौरान हमला किया. एमआईएम का दावा था कि लेखिका ने पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान इस्लाम के विरुद्ध घिनौने वक्तव्य दिए जिससे हमला भड़का. उस समूह ने तसलीमा के विरुद्ध पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई जिसके आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड विधान की धारा 153-अ के अंतर्गत (विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता भड़काने की) रपट दर्ज कर ली है.

हैदराबाद के प्रेस क्लब में बंगाली लेखिका तसलीमा नसरीन को आक्रमणकारियों से बचाया जा रहा है
(फोटो: नोआह सलीम/एएफपी)

इधर दूसरी तरफ़ जनता और मीडिया ने इस हमले की तीख़ी भर्त्सना की है और हमलावरों पर नरम रूख अपनाने के मुद्दे पर सरकारी रवैये की आलोचना की है. यह घटना तेजी से राजनीतिक आयाम लेती जा रही है. स्थानीय चुनाव निकट हैं, और विशेषज्ञों का कहना है कि एमआईएम इसे मुसलिम वोटों की लामबंदी के लिए एक औजार के रूप में इस्तेमाल कर रही है.

इस हमले ने बांग्ला चिट्ठाजगत् में भी हलचल पैदा की है . द हिडन गॉड ने लेखिका पर हमले की तीख़ी भर्त्सना की है. उनका कहना है:

“তসলিমা লেখালেখির মাধ্যমে নিজের মত প্রকাশ করেছেন তাই কেউ যদি তার প্রতিবাদ করতে চায় তবে তাও লেখালেখির মাধ্যমেই করা উচিত । এভাবে অসামাজিক কাজকর্ম করে নয় “

तसलीमा ने अपने विचारों को लिख कर प्रस्तुत किया है. तो जिस किसी को भी उनके विचारों का विरोध करना है तो वे भी लिख कर अपना मत प्रकट करें न कि असामाजिक कार्यों से जैसे कि उन पर हुए इस तरह के हमलों के जरिए.

काजी अलीम जमाल ने भी हमलावरों के लिए कड़े शब्द लिखे. उनका ये भी मानना है कि भारत सरकार को उन्हें नागरिकता प्रदान करने के उनके अनुरोध को मानना चाहिए.

अन्य चिट्ठाकार जैसे कि आरिफ को लगता है कि बांग्लादेश में तसलीमा पर लगे प्रतिबंध को हटाया जाना चाहिए व उन्हें अपनी मातृभूमि में वापस लौटने की इजाजत देनी चाहिए. इसी पोस्ट की टिप्पणियों में अन्य चिट्ठाकार जैसे कि भास्कर, बलाई इत्यादि ने आरिफ के कहे से सहमति जताई है और यह भी जोड़ा है कि तसलीमा की सुरक्षा बढ़ाई जानी चाहिए जिनके जीवन पर इस्लामी धर्मांधों के फ़तवे हैं.

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