हिन्दी : क्रिकेटिया माहौल और एक शहीद की याद

24 सितम्बर की शाम को दिल्ली में खुशियों का सैलाब तब बह निकला जब श्रीसंथ ने मिशाब-उल-हक का वो कैच पकड़ा जिसने भारत को पहले ट्वेंटी20 विश्वकप में शानदार जीत दिला दी!! मेरी पलक झपकी भी नहीं थी कि आस पड़ोस पटाखों की आवाजों से पट गया!! बीसीसीआई (बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल इन इंडिया) अध्यक्ष शरद पवार ने तत्काल ही टीम के लिए आठ करोड़ रुपयों तथा युवराज सिंग के उसके ट्वेंटी20 क्रिकेट में पहली दफा एक ओवर में 6 छक्के लगाने के लिए एक करोड़ रुपयों के पुरस्कारों की घोषणा कर दी. पूरा देश पिछले कई दिनों से क्रिकेटमय हो गया है. समाचार चैनलों में बारंबार भारत की जीत के ऐतिहासिक क्षण को दिखाया गया. यह भी बताया गया कि किस तरह भारत पिछले महीने मैच से बाहर होते होते रह गया था और फिर वह इंगलैण्ड, शक्तिशाली टीम दक्षिण अफ्रीका और प्रबल दावेदार तथा चार बार की विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हराकर फ़ाइनल में पहुँचा और अंततः विश्व चैंपियन बन गया था. इससे पहले टीम ने पाकिस्तान को हराया था जिसे तुक्के में मिली जीत की संज्ञा दी गई थी. दो दिन बाद जब टीम मुम्बई के सहारा एयरपोर्ट पर उतरी और एक खुली बस में जुलूस के रूप में निकली तो सड़कें जाम थीं – टीम की एक झलक पाने के लिए लाखों लोग सड़कों पर मौजूद थे. यही नहीं, सम्बन्धित राज्यों की सरकारों को क्रिकेट के पीछे पगलाए इस देश में यहाँ भी वोट बैंक दिखाई दे गया नतीजतन विजयी टीम के खिलाड़ियों पर इनामों (नकद राशि, भूमि इत्यादि) की बौछारें कर दी गईं.

ऐसे अनुराग व पुरस्कारों की बौछारों ने बहुतों को अप्रसन्न भी किया. बहुत से लोगों ने राज्य सरकारों द्वारा इस तरह नकद पुरस्कारों की बौछारों पर प्रश्न किया कि जब वे अन्य खेलों के लिए तथा राज्य में खेलों के लिए इतर सुविधाएँ प्रदान करने के लिए फंड का रोना रोते रहते हैं तो क्या ये वाजिब हैं. इनमें से बहुत से चिट्ठाकार भी हैं, जैसे कि नीरज, जिन्होंने राष्ट्रीय खेल हॉकी की लापरवाही भरी स्थिति पर प्रश्न किया जिनके खिलाड़ियों को पुरस्कार स्वरूप क्रिकेट खिलाड़ियों के चौथाई हिस्से भी कभी नहीं मिले. मीडिया के लोग जैसे कि राजेश ने मौका नहीं चूका और गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी को लपेटा कि उन्होंने राज्य के क्रिकेट खिलाड़ी पठान बंधुओं के लिए कोई पुरस्कारों की घोषणा क्यों नहीं की. इरफान पठान ने फ़ाइनल मैच में 3 महत्वपूर्ण विकेट लेकर विश्वकप विजय में प्रमुख भूमिका निभाई थी. राजनीतिक तथा मीडिया क्षेत्रों की आलोचनाओं से आशंकित, मोदी सरकार ने अंततः मौजूदा समय के भगवानों – पठान बंधुओं – के लिए नकद पुरस्कारों की घोषणा कर ही दी. अब जब यह मुद्दा हल हो गया तो राजेश ने क्रिकेट खिलाड़ियों को भगवान के तौर पर मानने व हॉकी खिलाड़ियों की उपेक्षा करने के नाम पर फिर से सरकार की जमकर खिंचाई की !! यह तो तीव्रतम टाक अबाउट टर्न अराउन्ड था जिसे मैंने देखा!! 😉

बात अभी पूरी नहीं हुई. भारतीय हॉकी टीम के कुछ सदस्यों ने उनकी हाल ही की एशिया कप विजय पर पुरस्कारों के टोटे, जबकि राज्य सरकारों द्वारा क्रिकेटरों को पुरस्कारों से लादने के विरोध में अनशन की चेतावनी दी! इस बीच, चूंकि क्रिकेट व हॉकी के बीच इनामों व पुरस्कारों के मुद्दे पर बहुत कुछ लिखा गया, जीतू ने अपने बचपन के दिनों में क्रिकेट के साथ किए गए प्रयोगों के बारे में लिखा. आखिरकार, क्रिकेट तो भारतीयों की सांसों में बसा हुआ है!!

28 सितम्बर को भारत ने उस महान सपूत की जन्म शताब्दी मनाई जिसने लायलपुर (अब पाकिस्तान में फैसलाबाद) में 100 वर्ष पहले जन्म लिया था. इस बालक को नाम दिया गया था भगत सिंह , एक नाम जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान शहीद के रूप में जाना जाता है. भगत सिंह 23 साल की उम्र में ब्रिटिश सरकार से भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए शहीद हुए थे. उन्हें 23 मार्च 1931 को उनसे अपेक्षाकृत कम प्रसिद्ध, उनके दो क्रांतिवीर दोस्तों सुखदेव तथा राजगुरू के साथ फांसी दी गई थी. इस अवसर पर अमर शहीद भगत सिंह के बारे में अपने विचारों को बहुत से चिट्ठाकारों ने लिखा परंतु मुझे सुखदेव तथा राजगुरू जिन्हें भगत सिंह के साथ उसी, एक ही कारण से फॉसी दी गई थी, के बारे में कोई एक बात भी कहीं लिखी नजर नहीं आई. न ही मुझे 15 मई को सुखदेव के प्रति कोई श्रद्धांजलि दिखाई दी – जिस दिन 1907 को – भगत सिंह से ठीक 4 महीने व 13 दिन पहले यह अमर शहीद जन्मा था!! इस बात से मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा और मैंने आगे भगत सिंह की श्रद्धांजलि स्वरूप पोस्टों को नहीं पढ़ा. अमर शहीद के प्रति मेरे मन में ऐसा कुछ भी नहीं है, मगर मुझे लगता है कि उनके दो निष्ठावान दोस्तों जो एक ही विचारधारा के थे और साथ जिए साथ मरे, उन्हें उनके हिस्से की प्रसिद्धि नहीं मिली जो उन्हें मिलनी ही चाहिए थी!

कड़ियाँ साभार: नारद

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