यह लेख ज़िज़ी शुशा द्वारा लिखा गया था, और मूल रूप से 29 जनवरी, 2024 को रसीफ़22 में प्रकाशित हुआ था। सामग्री-साझाकरण समझौते के हिस्से के रूप में एक संपादित संस्करण ग्लोबल वॉयस पर पुनः प्रकाशित किया गया है।
गाजा पर चल रहे इजरायली युद्ध ने कई जटिल प्रश्न सामने ला दिए हैं जिनके वर्षों तक बने रहने की संभावना है। इनमें पश्चिमी मस्तिष्क में पूर्व और अरबी लोगों की कल्पित छवि भी शामिल है।
टाइम मैगज़ीन के अपने लेख “गाज़ा एंड द एंड ऑफ़ वेस्टर्न फ़ैंटेसी” में, पुर्तगाल में यूरोपीय मामलों के पूर्व सचिव ब्रूनो माकेज़ ने राजनीतिक और सांस्कृतिक लेंस के माध्यम से गाज़ा पर युद्ध का विश्लेषण किया है।
यह पश्चिमी कल्पना क्या है और इससे अरबों को क्या ख़तरा है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, हमें “अन्य” के विचार को समझना होगा।
यूरोपीय महाद्वीप के गठन से पहले, “अन्य” का विचार उस तरह मौजूद नहीं था जैसा कि अब हम इसे आमतौर पर समझते हैं। फिलिस्तीनी विचारक एडवर्ड सईद ने अपनी पुस्तक “ओरिएंटलिज्म” में कहा है कि पश्चिमी विचारकों का मानना था कि पश्चिमी संस्कृति अरबों और पूर्व के विरोध में खुद को स्थापित करके अधिक शक्ति और सही पहचान हासिल करेगी। “अन्य” के रूप में अरब को इस संबंध में विशेष रूप से अलग किया गया था।
यदि पश्चिमी शक्ति दूसरे के साथ टकराव से उत्पन्न हुई, तो दूसरे के इतिहास और मान्यताओं को कमजोर करना, उपनिवेश बनाना, विकृत करना और गलत साबित करना और अंततः उसकी मानवता को छीन लेना पश्चिमी हित में है।
पश्चिमी कल्पना ने अरब व्यक्ति और अरब संस्कृति को विकृत और मिथ्या बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अरबों की भयावह छवि को पुख्ता करने में हॉलीवुड ने सबसे खतरनाक भूमिका निभाई है। यहां, हम अमेरिकी सिनेमा में अरबों की विभिन्न छवियों का पता लगाते हैं ताकि यह पता चल सके कि पश्चिमी कल्पना द्वारा अरबों को किस तरह से अमानवीय दर्शाया गया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के अरब मूल के फिल्म समीक्षक जैक शाहीन (1935-2017) को एक अनुदान मिला था, जिसने उन्हें 1980 और 1990 के दशक में 15 से अधिक अरब शहरों में रहने में सक्षम बनाया। अमेरिका वापस जाते समय उन्होंने अरब लोगों के प्रति भयानक अन्याय के बारे में बात की। उन्हें आश्चर्य हुआ कि कैसे अमेरिकी सिनेमा ने इन दयालु, शांतिपूर्ण लोगों को विकृत करके जंगली बना दिया?
यहीं पर अमेरिकी सिनेमा में अरबों की बुरी छवि के बारे में उनके विश्वकोश प्रोजेक्ट के विचार ने एक पुस्तक “रील बैड अरब्स: हाउ हॉलीवुड विलिफ़ाईज़ ए पीपल” के रूप में आकार लिया।
पुस्तक का अरबी अनुवाद काहिरा में राष्ट्रीय अनुवाद केंद्र द्वारा दो भागों में प्रकाशित किया गया था। शाहीन ने अपने जीवन के कई वर्ष इस पुस्तक को पूरा करने में बिताए, जिसमें उन्होंने मूक सिनेमा युग से लेकर परिष्कृत प्रौद्योगिकियों पर निर्भर फिल्मों के युग तक की 900 से अधिक अमेरिकी फिल्मों की आलोचना और विश्लेषण किया।
उनके द्वारा समीक्षा की गई सभी फिल्मों में से, शाहीन केवल बारह फिल्मों का संदर्भ देने में सक्षम थे, जिन्होंने अरब पात्रों को सकारात्मक रूप से चित्रित किया था, जबकि भारी बहुमत ने अरब व्यक्ति को खतरे का स्रोत मानते हुए उनकी बेहद नकारात्मक, बर्बर और आक्रामक छवि पेश की थी। हर फिल्म में अरबी चरित्र को बिना दया के मारे जाने की छूट रहती।
हॉलीवुड द्वारा चित्रित अरबी कौन हैं?
जैक शाहीन के मुताबिक, पूरे इतिहास में, फिल्म निर्देशकों ने अरबों को शत्रुतापूर्ण, क्रूर, बर्बर और पैसे के प्रति जुनूनी धार्मिक कट्टरपंथी करार दिया है। सांस्कृतिक रूप से, अरबी “अन्य” लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो सभ्य पश्चिमी लोगों, विशेषकर ईसाइयों और यहूदियों को आतंकित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
युद्ध, कई देशों के उत्थान और पतन और 1986 के बाद से हुई स्वतंत्रता और मानवाधिकारों से संबंधित सांस्कृतिक उपलब्धियों के बावजूद, शाहीन के अनुसार, “हॉलीवुड में अरबियों का सिल्वर स्क्रीन पर व्यंग्य चित्रण शिकार की तलाश में घूम रहा है। वह आज भी वहीं है—हमेशा की तरह घृणित और अप्रमाणिक।”
आलोचक मानते हैं कि अमेरिकी निर्देशकों ने अरबियों की रूढ़िवादी छवि स्वयं नहीं बनाई, बल्कि उन्हें यह यूरोपीय लोगों से विरासत में मिली, जो अरबों के ऐसे व्यंग्यचित्र फैलाने वाले पहले व्यक्ति थे। शाहीन बताते हैं:
In the eighteenth and nineteenth centuries, European artists and writers helped reduce the region to a colony. They presented images of desolate deserts, corrupt palaces, and slimy souks inhabited by the cultural other—the lazy, bearded heathen Arab Muslim. The writers’ stereotypical tales were inhabited with cheating vendors and exotic concubines held hostage in slave markets.
अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में, यूरोपीय कलाकारों और लेखकों ने इस क्षेत्र को एक उपनिवेश में बदलने में मदद की। उन्होंने उजाड़ रेगिस्तानों, भ्रष्ट महलों और घिनौने बाज़ारों की छवियां प्रस्तुत की जिनमें ये “अन्य” लोग रहते थे — आलसी, दाढ़ी वाले परधर्मावलंबीअरब मुस्लिम। लेखकों की रूढ़िवादी कहानियाँ धोखेबाज विक्रेताओं और दास बाजारों में बंधक बनाई गई विदेशी रखेलों से पटी हुई थीं।
विदेशियों और बर्बर लोगों द्वारा “हरम की युवतियों” पर अत्याचार करने और को अपने वश में करने के ऐसे चित्रणों को दर्शकों ने तब तक सत्य के रूप में स्वीकार किया, जब तक कि ये रूढ़ियाँ पश्चिमी दिमाग में अंकित नहीं हो गईं।
शाहीन ने अरब लोगों के बारे में पश्चिम की धारणा पर “अरेबियन नाइट्स: वन थाउजेंड एंड वन नाइट्स” की कहानियों के व्यापक प्रभाव की जांच की। 1979 तक, इन कहानियों का बाइबिल को छोड़कर किसी भी अन्य पुस्तक की तुलना में अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया था, और उनका प्रभाव सिर्फ धारणाओं को आकार देने से परे चला गया। उन्होंने अरबों की पश्चिमी कल्पना और फंतासी को प्रज्वलित किया, जिससे कई छवियों और कहानियों का निर्माण हुआ।
1900 के दशक की शुरुआत में शाहीन के अनुसार, “फ्रांसीसी जॉर्ज मेलियस जैसे फिल्म निर्माताओं ने हरम में नाचती हुई युवतियों और बदसूरत अरबों की छवियां पेश कीं।” अरबी लोग ऊँटों पर सवार होते थे, घुमावदार तलवारें चलाते थे, एक-दूसरे को मारते थे, यूरोपीय नायिकाओं पर लार टपकाते थे और अपनी महिलाओं की उपेक्षा करते थे। शाहीन लिखती हैं, “मेलिएस की द पैलेस ऑफ अरेबियन नाइट्स (1905) में, विनम्र युवतियां एक ऊबे हुए, लालची, काली दाढ़ी वाले शक्तिशाली शासक की खातिरदारी करती हैं जबकि महल का एक हट्टा-कट्टा रक्षक विशाल पंखों वाला एक पंखा झालकर उन तक ठंडक पहुंचाता है।”
जहां तक हॉलीवुड में अरबी महिलाओं का सवाल है, समीक्षा की गई 50 से अधिक फिल्मों में उन्हें पीड़ा की शिकार के रूप में दर्शाया गया है। महिलाओं का या तो अपमान किया गया, उन पर कब्ज़ा किया गया या वे यौन शोषण की शिकार हुईं। इनमें से सोलह फ़िल्मों में अर्धअरबी महिलाएँ, या मूक दासियाँ शामिल थीं। अरब महिलाओं को किसी भी पश्चिमी पुरुष से शादी करते नहीं दिखाया गया, और पुरुषों और अरब महिलाओं के बीच शारीरिक संपर्क दुर्लभ पाया गया, जिसके कारण शाहीन ने निष्कर्ष निकाला, “ऐसा लगता है कि एक अरब महिला का पश्चिमी पुरुष से विवाह हॉलीवुड में वर्जित है। ऐसा बहुत कम फिल्मों में ही हुआ है।”
फिलिस्तीनी की छवि
जैक शाहीन ने देखा कि यद्यपि 1980 और 1990 के दशक में निर्मित अरब पात्रों वाली कई फिल्मों में फिलिस्तीनी भी शामिल थे, लेकिन वे उन्हें प्रामाणिक रूप से चित्रित करने में विफल रहे। उन्होंने विशेष रूप से फिलिस्तीनियों के लिए हॉलीवुड द्वारा गढ़ी गई झूठी छवि की कड़ी निंदा की। इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को संबोधित करने वाली हॉलीवुड फिल्मों में मानवीय नाटक का अभाव था और फिलिस्तीनियों को सामान्य लोगों जैसा दिखाया गया था।
शाहीन ने पाया कि फिलिस्तीनियों को कभी भी क्रूर इजरायली उत्पीड़न के निर्दोष पीड़ितों के रूप में नहीं दिखाया गया; फ़िल्मों में कभी भी फ़िलिस्तीनी शहरों में बसने वालों को जैतून के पेड़ों को उखाड़ते और अपनी राइफ़लों से फ़िलिस्तीनी नागरिकों को मारते हुए नहीं दिखाया गया। ये फ़िल्में फ़िलिस्तीनी परिवारों के कब्जे में या शरणार्थी शिविरों में रहने के संघर्ष को चित्रित करने में भी विफल रहीं, जो अपनी मातृभूमि और “फ़िलिस्तीन” का पासपोर्ट पाने के लिए जद्दो जहद करते हैं।
इज़राइल राज्य की स्थापना के ठीक एक साल बाद, फिल्म “स्वोर्ड इन द डेजर्ट” ने फिलिस्तीन को “वीरान भूमि” के रूप में प्रस्तुत किया, जो कि लोकप्रिय ज़ायोनी नारे की प्रतिध्वनि थी, इस तथ्य के बावजूद कि उस समय उस भूमि पर रहने वाले अधिकांश लोग वास्तव में फ़िलिस्तीनी थे। इस मिथक “फिलिस्तीन में कोई फिलिस्तीनी नहीं रहता है” को 1966 की फिल्म “कास्ट ए जाइंट शैडो एंड जूडिथ” में दोहराया गया।
शाहीन के मुताबिक, “ट्रू लाइज़” और “वांटेड: डेड ऑर अलाइव” सहित 7 फ़िल्में फ़िलिस्तीनियों को नर्व-गैस का उपयोग करने वाले आतंकवादियों के रूप में चित्रित करती हैं। “हाफ मून स्ट्रीट,” “टेरर इन बेवर्ली हिल्स,” और “ए डेट विद डेथ” सहित 11 से अधिक फिल्मों में फिलिस्तीनियों ने पश्चिमी बच्चों और महिलाओं को चोट पहुंचाई और उन पर अत्याचार किया।
इस धोखे और विकृति को देखने के बाद, शाहीन को आश्चर्य हुआ कि क्या कोई अलिखित कानून मौजूद है कि हॉलीवुड को फिलिस्तीनियों को तर्कहीन और दुष्ट के रूप में चित्रित करना चाहिए, जबकि सभी इजरायलियों को तर्कसंगत और धार्मिक दिखाना चाहिए। झूठ, गलत सूचना और तथ्यों के मिथ्याकरण के बारे में सवाल करने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन फ़िलिस्तीनियों का चल रहा नरसंहार इसका कोई जवाब नहीं है।