[1]मेक्सिको सिटी में पिछले सप्ताह सत्रहवां अंतर्राष्ट्रीय एड्स सम्मेलन [2] सम्पन्न हुआ. अगला सम्मेलन विएना में 2010 में होगा तब तक के लिए प्रतिभागियों को कई मुद्दों पर ध्यान दिए जाने हेतु अच्छा खासा मसाला मिल गया है. एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर सही में ध्यान दिया जाना आवश्यक है वो है एचआईवी-धनात्मक व्यक्तियों पर विभिन्न देशों में कम या लंबी अवधि के लिए यात्रा व प्रवेश पर प्रतिबंधों [3] के बारे में. सम्मेलन के आयोजकों तथा बहुत से अधिकारियों ने इस तरह के नियमों की भर्त्सना की व इसे घोर शर्मनाक बताया.
साइडेव.नेट के सम्मेलन ब्लॉग ने रपट [4] दी:
“एड्स 2008 सम्मेलन में जिस एक मुद्दे पर अच्छी खासी बहस चली वो इस पर थी कि बहुत से देशों में एचआईवी-धनात्मक व्यक्तियों के प्रवेश, उनके यात्रा इत्यादि पर प्रतिबंध लगा हुआ है.
यूएनएड्स द्वारा अन्य संगठनों के सहयोग से प्रकाशित किए गए एंट्री डिनाइड नाम के एक प्रकाशन – जिसे सम्मेलन में वितरित किया गया – के अनुसार कम से कम 67 ऐसे देश हैं जो एचआईवी/एड्स से पीड़ित व्यक्तियों को अपने यहाँ घुसने ही नहीं देते. ”
मेक्सिको, जहाँ एड्स 2008 सम्मेलन हुआ, वहां एचआईवी/एड्स पीड़ितों की यात्राओं में कोई प्रतिबंध नहीं है [5] , परंतु 65 या अधिक देश ऐसे हैं जहाँ तमाम विश्व के 3.3 करोड़ एड्स पीड़ितों की यात्रा/प्रवेश पर प्रतिबंध है. यूरोपीय एड्स ट्रीटमेंट ग्रुप [6] के अनुसार, इनमें से ये सात ऐसे देश हैं जहाँ एचआईवी-धनात्मक व्यक्तियों पर पूर्ण प्रतिबंध है – ब्रुनेई, ओमान, कतर, दक्षिण कोरिया, संयुक्त अरब अमीरात तथा यमन. ये देश यह तर्क देते हैं कि इस तरह के प्रतिबंधों से इस बीमारी की रोकथाम में मदद मिलेगी तथा अन्य देशों के एचआईवी पीड़ित व्यक्तियों के इलाज के खर्चों से बचा जा सकेगा.
डेविड कोजाक ने एड्स 2008 सम्मेलन पर मानव अधिकार सत्र के बारे में चिट्ठा लिखा. उनका कहना [7] है कि विशेषज्ञ इस तरह के तर्क से सहमत नहीं हैं-
“एचआईवी ग्रस्त व्यक्तियों के यात्रा प्रतिबंध विषयक सत्र के दौरान प्रतिभागियों ने यह बताया कि इस तरह के प्रतिबंधों से कोई लाभप्रद परिणाम मिले हों ऐसे साक्ष्य नहीं होने के बावजूद 67 देश ऐसे हैं जहाँ ये प्रतिबंध अभी भी बरकरार हैं. ”
ऐसे प्रतिबंधों को लागू करने वाले देशों में चीन भी शामिल है. पूरी संभावना थी कि ओलंपिक खेलों से पहले चीन एचआईवी संबंधित यात्रा प्रतिबंधों को खत्म कर देगा परंतु ऐसा नहीं हुआ और देश में खेलों के दौरान प्रतिबंध [8] लागू रहे. उनके वर्तमान नियमों [9] के तहत थोड़े समय के लिए यात्रा करने वाले यात्रियों को आवश्यक रूप से उनके एचआईवी स्थिति को बताना होगा तथा लंबे समय तक रुकने वाले यात्रियों को आवश्यक रूप से खून की जाँच करवानी होगी. और यदि वे एचआईवी-धनात्मक पाए जाते हैं तो उन्हें देश में प्रवेश नहीं दिया जाएगा.
डेन्से पैटर्सन जो थाइलैंड से चिट्ठा लिखते हैं, उनकी चीन में ओलंपिक के दौरान एड्स तथा अन्य बीमारियों से ग्रस्त [10] पर्यटकों पर प्रतिबंध के बारे में टिप्पणी [11]है :
” मानसिक तथा यौन रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों पर प्रतिबंध? यह तो बेहद हास्यास्पद है. यदि चीनी सरकार ये मानती है कि वो ओलंपिक को हर तरीके से नियंत्रित कर सकती है तो बड़े दुख की बात है कि वो गलत है…
… विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2007 के आंकड़ो के अनुसार चीन में एचआईवी/एड्स संक्रमण की दर जनसंख्या का 2.9% रही जो यह इंगित करती है कि प्रतिबंध कहीं कोई काम नहीं आ रहा. ”
हालांकि चीन पर दबाव डाले जा रहे हैं और इस पर कुछ प्रतिक्रियाएँ भी हो रही हैं. चाइना डेली ने रपट [12] दी है कि चीनी सरकार के बीमारी नियंत्रण व रोकथाम ब्यूरो के डिप्टी डायरेक्टर हाओ यांग ने एड्स 2008 में बताया कि दो दशकों से लागू एचआईवी/एड्स व्यक्तियों पर लागू यात्रा प्रतिबंध 2009 में हटा लिया जाएगा.
परिवर्तन के लिए चीन अमरीका की राह पर चल रहा प्रतीत होता है. जुलाई में अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने एक निरस्ती विधेयक पर हस्ताक्षर किए जिसे अमरीका में एचआईवी-धनात्मक पर्यटकों, विद्यार्थियों तथा प्रवासियों के लिए प्रवेश पर प्रतिबंध को पूरी तरह से समाप्त करने के एक कदम के रूप में देखा गया है. हालांकि प्रतिबंध को पूरी तरह हटाने के लिए हेल्थ तथा ह्यूमन सर्विस (एचएचएस) विभाग द्वारा जारी प्रतिबंधित बीमारियों की सूची में एचआईवी का नाम अभी भी है जिसे आवश्यक रूप से हटाया जाना बाकी है.
इस विधेयक के धनात्मक पक्षों के बारे में टूदसेंटर.कॉम पर केविनएफ लिखते हैं [13] .
“बहुत से एड्स विशेषज्ञ और कार्यकर्ता नए विधेयक का स्वागत कर रहे हैं. पहले लगाए गए प्रतिबंध ज्यादा बुरे प्रभाव डाल सकते थे – लोग अपनी एचआईवी स्थिति के बारे में झूठ बोलकर समस्या बढ़ा सकते थे. यह भेदभाव पूर्ण व्यवहार तथा झूठ को बढ़ावा भी देता था. ”
वर्ल्ड विजन इंटरनेशनल के रेव. क्रिस्टो ग्रेलिंग का एक वीडियो [14] डेविड मुनार प्रस्तुत करते हैं जिसमें यह बताया गया है कि इस तरह के प्रतिबंध किस प्रकार से नुकसानदेह साबित होते हैं. तथा वे अमरीकी निरस्ती विधेयक पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं.
लारा-के, जिन्होंने एड्स 2008 के युवा साइट के लिए चिट्ठा लिखा – चेतावनी [15] देती हैं कि यूएस का निरस्ती विधेयक एक बड़ा कदम तो है, पर इसे अंतिम नहीं माना जाना चाहिये.
“अब यह स्वास्थ्य सचिव के ऊपर है कि इन नए नियमों को लागू करें. संयुक्त राज्य अमरीका में आने वाले व्यक्तियों के लिए प्रतिबंधित बीमारी की सूची में से एचआईवी को हटा लिया जाना चाहिए. कांग्रेसी [बारबरा] ली को पूरा भरोसा है कि इसे जल्द ही लागू कर दिया जाएगा. ”
वो अपने एड्स 2008 प्रश्नोत्तर काल के दौरान हुए अपने अनुभवों के आधार पर बताती हैं कि इस तरह के यात्रा प्रतिबंधों ने एचआईवी पीड़ितों के लिए कितनी समस्या खड़ी की है.
“एक व्यक्ति राज्य के विश्वासघात को व्यक्त करने आया कि किस तरह उसे प्रतिबंधों की वजह से एक नागरिक को देश से बाहर फेंक दिया गया. उसे व्यक्तिगत अनुभव था कि एक अमरीकी नागरिक कनाडा में अपने एचआईवी-धनात्मक जोड़ीदार के साथ रहता था. उसे प्रतिबंधों की वजह से मजबूर किया गया कि या तो वो अपना देश चुन ले या फिर अपना जोड़ीदार – क्योंकि उस एचआईवी-धनात्मक जोड़ीदार को अमरीका में प्रवेश नहीं दिया जा सकता. और इस समस्या से मुक्ति पाने में उसे 20 साल लग गए. ”
रेड ट्रेवलिंग सूटकेस [16] का फोटो tofutti break [17] द्वारा फ्लिकर से.