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पर्यावरण : जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त-राष्ट्र सम्मेलन भाग 1

विभाग: नागरिक मीडिया, पर्यावरण, विकास

- थीमेटिक प्लेनेरी I – एडॉप्टेशन – फ्रॉम वल्नेरेबिलिटी टू रेजिलिएंस.

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फ़ैसिलिटेटर – डॉ. आशा-रोज़ मिगिरो उप महा सचिव [1] सह सभापति आदरणीय श्री आंदेर्स फॉग रासमुसेन [2], प्रधान मंत्री, डेनमार्क
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आदरणीय श्री ओवेन आर्थर [3], प्रधान मंत्री, बारबादोस

ट्वीट यहाँ [4] पर हैं, सम्मेलन जारी है और साथ ही साथ यह पोस्ट भी जोड़ा जा रहा है.

मीटिंग के दौरान राष्ट्रपतियों व प्रधानमंत्रियों ने अपने अपने राष्ट्रों के बारे में बताते हुए पैनल को संबोधित किया. कुछेक ने बताया कि वे (नीदरलैंड, मॉरीशस तथा अन्य) किस तरह जलवायु परिवर्तनों के साथ अपने आप को ढाल रहे हैं. जबकि कुछ अन्य ने उनकी अपनी प्रमुख चुनौतियों के बारे में बातचीत की. कुल मिलाकर सभी नेताओं ने यह माना कि जलवायु में परिवर्तनों से धरती पर बड़ा खतरा मंडराने लगा है. एक अपवाद भी रहा. चेक गणराज्य के प्रतिनिधि ने कहा कि उन्हें भरोसा नहीं है कि इंटर गवर्नमेंट पेनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रपट संतुलित है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक आधारों में सर्वसम्मति नहीं है तथा इस हेतु आईपीसीसी के विरोधाभासी तर्कों व निष्कर्षों की जांच पड़ताल के लिए यूएन को एक पैनल गठित किया जाना चाहिए. उन्होंने साफ साफ यह मानने से इंकार किया कि ग्लोबल वार्मिंग कोई समस्या है. माहौल तालियों से भरा हल्काफुल्का तब हो गया जब उन्होंने यह चुटीला छोड़ा कि लोगों को ऊर्जा बचाना चाहिए और अपने कमरे को ठंडा रखना चाहिए.

अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों ने अपने अपने देशों में हो रहे जलवायु परिवर्तनों के प्रभावों के उदाहरण दिए. घाना के राष्ट्रपति द्वारा दिया गया निम्न वक्तव्य अन्य अफ़्रीकी देशों के नेताओं द्वारा बताए गए विवरणों के प्रतिबिम्ब स्वरूप रहा कि मौजूदा परिस्थिति कैसी है.

अफ़्रीका तथा अन्य विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन की वजह से जीवन की आवश्यकताओं की गारंटी के लिए पहले से ही मुश्किलें पैदा होने लगी हैं. ये देश जिनमें मेरा देश घाना भी शामिल है, पहले से ही पर्यावरण के बारे में ग़लत जानकारियों की वजह से तथा औद्योगिक देशों के उत्सर्जनों की वजह से परिवर्तनों के प्रभावों को महसूस कर रहे हैं. बारिश की ऊंच-नीच, सूखा, मरूस्थलीकरण, बाढ़ तथा अन्य मौसम आधारित विपदाएँ सीधे सीधे मनुष्य के जीवन पर खतरा पैदा कर रहे हैं और कृषि उत्पादन, भोजन और पानी की सुलभता को भी कम कर रहे हैं.

कुछ उदाहरण मिले हैं कि किस तरह देशों ने अपने आपको जलवायु परिवर्तन के अनुरूप ढाला है. नीदरलैंड के प्रधानमंत्री ने बताया कि उनका देश कुछ अभिनव समाधानों [5] जैसे कि उन्नत जल प्रबंधन, बांध निर्माण व तैरते घरों इत्यादि के जरिए पर्यावरण के दुष्प्रभावों से काफी लंबे समय से बचने के उपाय करता आ रहा है.

जलवायु परिवर्तन के अनुरूप ढलने के लिए और क्या किए जाने चाहिएँ – कुछ उदाहरण: पुनः जंगल उगाना, नवीन ऊर्जा स्रोतों जैसे कि पवन चक्कियाँ, सूर्य तथा बायोमॉस (मारीशस तथा मेडागास्कर के प्रतिनिधियों द्वारा जिक्र किया गया) का इस्तेमाल.

जलवायु परिवर्तनों के कारण द्वीपों की स्थिति भी बहुत गंभीर है तथा बारबाडोस के प्रधान मंत्री ने अपने संदेश को समाप्त करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तनों से जूझना अब जीवन के लिए जूझने जैसा हो गया है.

ट्वीट का भाग 2 यहाँ [6] है

टीप: इस वर्ष पहले ही यूएन के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने रपट जारी कर दी है कि जलवायु परिवर्तन का ‘सर्वाधिक बुरा प्रभाव अफ्रीका [7] में महसूस किया जाएगा.
और अधिक जानकारियाँ यूएन से जीवंत देखें [8].